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बाण गंगा घाट, कांगड़ा

श्रेणी धार्मिक

बान गंगा घाट, कांगड़ा

बान गंगा घाट (जिसे बन गंगा घाट भी लिखा जाता है) कांगड़ा जिले के कांगड़ा शहर में बान गंगा नदी (बनेर खड्ड) के तट पर नव-विकसित एक पवित्र स्नान घाट है। यह भक्तों के लिए पवित्र स्नान करने, अनुष्ठान करने तथा हरिद्वार की गंगा आरती की तर्ज पर शाम की आरती में भाग लेने का एक शांतिपूर्ण स्थान है। यह प्रतिष्ठित श्री बजरेश्वरी देवी मंदिर (51 शक्ति पीठों में से एक) से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है तथा देव भूमि के नाम से प्रसिद्ध कांगड़ा आने वाले हजारों तीर्थयात्रियों के आध्यात्मिक अनुभव को और समृद्ध बनाता है।

बान गंगा (बनेर) नदी के ऐतिहासिक दृश्य, जो कांगड़ा किले के निकट बहती हुई दिखाई देती है।

बान गंगा नदी का ऐतिहासिक महत्व

  • प्राचीन उल्लेख: कांगड़ा (प्राचीन नाम त्रिगर्त या नागरकोट) का उल्लेख महाभारत, पुराणों तथा ऋग्वेद में मिलता है (ब्यास/विपाशा जैसी नदियों से सिंचित क्षेत्रों के भाग के रूप में)। बान गंगा नदी प्रसिद्ध कांगड़ा किले के चारों ओर प्राकृतिक खाई का निर्माण करती है (यह भारत के सबसे पुराने दस्तावेजीकृत किलों में से एक है, जिसका उल्लेख सिकंदर के आक्रमण काल ~326 ईसा पूर्व से मिलता है तथा 1009 ईस्वी में महमूद गजनवी के हमले की पुष्टि होती है)। किला बान गंगा तथा माझी खड्ड (जिसे पाताल गंगा भी कहा जाता है) के संगम पर स्थित है, जो तीन ओर से रणनीतिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • कटोच वंश में भूमिका: कटोच शासक (जिन्हें विश्व का सबसे पुराना जीवित राजवंश माना जाता है) ने नदी के भू-आकृति का उपयोग किलेबंदी के लिए किया। नदी के तटों पर युद्ध, घेराबंदियाँ (जैसे 1620 में मुगल विजय) तथा सांस्कृतिक विकास हुआ।
  • कोई प्रमुख अखिल भारतीय पौराणिक कथा नहीं: वैष्णो देवी (जम्मू) की प्रसिद्ध बान गंगा (माता के बाण से उत्पन्न) अथवा बांगंगा टैंक (मुंबई, भगवान राम के बाण से) के विपरीत, कांगड़ा की बान गंगा में कोई प्रमुख पैन-इंडियन पौराणिक कथा नहीं है। स्थानीय लोककथाएँ कभी-कभी निकटवर्ती स्थलों (जैसे 16वीं शताब्दी का बान गंगा मंदिर, जो दुर्गा को समर्पित है तथा एक ऋषि के दर्शन के अनुसार बनाया गया) को नदी के शुद्धिकरण जल से जोड़ती हैं, किंतु ये क्षेत्रीय हैं।
  • पुरातात्विक संबंध: इसके तटों पर पाषाण युग के औजार मिले हैं (जैसे राहौर गांव में), जो प्रागैतिहासिक मानव गतिविधि दर्शाते हैं। नदी ने उपजाऊ कांगड़ा घाटी में प्राचीन बस्तियों को सहारा दिया।

हालिया विकास तथा उद्घाटन

  • उद्घाटन: 2-3 दिसंबर 2025 को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री सुखविंदर सिंह सुखू द्वारा किया गया, जिन्होंने वैदिक मंत्रों के बीच पहली शाम की आरती भी संपन्न की।
  • विशेषताएँ: भव्य आरती मंच, 25 फीट ऊँचा त्रिशूल स्थापना, चेंजिंग रूम, शौचालय, सुसज्जित पार्क, आकर्षक मंच, उन्नत प्रकाश व्यवस्था तथा सुरक्षित स्नान क्षेत्र।
  • दैनिक शाम की आरती, योग सत्र, धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

स्थान तथा पहुंच

  • कांगड़ा शहर में बान गंगा नदी के किनारे स्थित, बजरेश्वरी देवी मंदिर तथा कांगड़ा किले के निकट।
  • निकटतम हवाई अड्डा: गग्गल (कांगड़ा) हवाई अड्डा (~10-15 किमी)।
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: कांगड़ा मंदिर स्टेशन (~3-5 किमी)।
  • सड़क मार्ग से: एनएच503 से आसानी से पहुँचा जा सकता है; कांगड़ा बस अड्डे के निकट।
  • सर्वोत्तम समय: वर्ष भर, विशेष रूप से शाम की आरती के लिए |